कॉमनवेल्थ गेम्स के आयोजन में भ्रष्टाचार और गंभीर घोटालों के आरोपों से घिरे सुरेश कलमाडी अब सीबीआई की हिरासत में हैं, लेकिन उनके अपराध पर अदालत का फैसला आना बाकी है। मगर जो बात अभी बेहिचक कही जा सकती है, वो यह कि कलमाडी आम मानस में खेल प्रशासन में जारी बदइंतजामी, दादागीरी और मनमानी का प्रतीक बन चुके हैं। तकरीबन 15 साल से वे ओलिंपिक संघ के अध्यक्ष पद पर काबिज हैं।
जगजाहिर है कि ऐसा उन्होंने खेल संघों में अपने लोगों को अनुचित प्रश्रय देकर उनकी वफादारी खरीदते हुए किया है। खेल संघों में यह रुझान ऊपर से नीचे तक इस हद तक कुंडली जमाए बैठा है कि भारतीय खेलों का विकास आज दूर की कौड़ी नजर आता है। खेल संघों पर बैठे ताकतवर लोगों की मनमर्जी के मुताबिक न चलने का क्या परिणाम होता है, इसे हम हॉकी कोच होजे ब्रासा और फुटबॉल कोच बॉब हॉटन के अंजाम से समझ सकते हैं। इन अधिकारियों की ताकत का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि खेल संघों के संचालन में सुधार के मुद्दे पर वे सीधे सरकार को चुनौती देने की हद तक चले गए।
अधिकारियों के कार्यकाल और उम्र सीमा लागू करने की सरकार की योजना को उन्होंने ठेंगा दिखाया। इसलिए कलमाडी की गिरफ्तारी के साथ खेल मंत्री अजय माकन का ओलिंपिक संघ से नया अध्यक्ष चुनने के लिए कहना और इस संबंध में अटॉर्नी जनरल से सलाह लेने का फैसला स्वागतयोग्य पहल है। कलमाडी का पतन भारतीय खेल को स्वार्थी अधिकारियों के शिकंजे से छुड़ाने का एक मौका साबित हो सकता है, बशर्ते सरकार पक्का इरादा दिखाती रहे। अगर इस राह में अंतरराष्ट्रीय ओलिंपिक समिति से भी टकराव अपरिहार्य हो जाता है, तो हिचकने की जरूरत नहीं है। खेल प्रशासन को जवाबदेह बनाना ऐसा उद्देश्य है, जिसके लिए अगर कोई कीमत है तो उसे चुकाने को तैयार रहना चाहिए।
No comments:
Post a Comment