नई दिल्ली. आज अर्थ डे है। इस समय पूरी दुनिया पर ग्लोबल वार्मिंग का खतरा मंडरा रहा है। आइए देखते हैं कि धरती के सामने 10 बड़ी चुनौतियां क्या हैं..
जनसंख्या बोझ : दुनिया की आबादी अभी 6.91 अरब है। वर्ष 2050 तक यह 9.15 अरब हो जाएगी। यही रफ्तार रही तो अगले 40 साल में 10 में से सिर्फ एक को ही भरपेट भोजन मिल पाएगा।
तपती धरती : ग्लोबल वार्मिंग से धरती का तापमान 1880 के बाद करीब एक डिग्री बढ़ चुका है। इसकी बड़ी वजह है, कार्बन उत्सर्जन। वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा नवबंर १९५८ में ३१३.३४ पाट्र्स/मिलियन थी। यह २००९ में करीब ३८७.४१ पाट्र्स/मिलियन हो गई।
पिघलते ग्लेशियर : ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। आर्कटिक ध्रुव पर सिर्फ 27 ग्लेशियर ही बचे हैं। जबकि 1990 में 150 थे। इससे सदी के अंत तक समुद्र के पानी का स्तर 7 से 23 इंच बढ़ जाएगा। कई तटीय क्षेत्र डूब जाएंगे।
घटते जंगल : अर्थ ऑब्जरवेटरी नासा के मुताबिक वर्तमान में हर साल करीब 3.5 करोड़ एकड़ जंगलों की कटाई होती है। जंगल कटने से फल, फाइबर, कागज, तेल, मोम, रंग, औषधि आदि की कीमतें बढ़ रही हैं। इससे भारत को हर साल करीब 4 लाख करोड़ का नुकसान होता है।
जमीन बंजर: मिट्टी की ऊपरी परत हर साल २५ अरब टन कम हो रही है। यही जमीन को उपजाऊ बनाती है। इसमें १३ महत्वपूर्ण पोषक तत्व होते हैं, जो पानी में मिलने के बाद पेड़-पौधों और फसल विकसित करते हैं। इसके नष्ट होने पर जमीन बंजर।
रेगिस्तान : दुनिया में हर साल करीब 32 हजार किमी जमीन रेगिस्तान हो जाती है। इस वक्त करीब 20 फीसदी जमीन रेगिस्तान बन चुकी है।
खत्म संसाधन : दुनिया में भी हर साल करीब ८.१ करोड़ बैरल तेल का उत्पादन होता है। वर्ष २०३० तक इसके घटकर करीब ३.९ करोड़ बैरल सालाना रह जाने की आशंका है।
प्रदूषण : वर्ष १९५० में प्लास्टिक का प्रयोग ५0 लाख टन था जो आज करीब १०करोड़ टन है। वर्ष १९५० में दुनिया में ५० लोगों पर एक कार होती थी। यह आंकड़ा वर्तमान में १२ लोगों पर एक कार का हो चुका है।
बिन पानी: दुनिया में आज करीब एक अरब लोगों को पीने लायक पानी नहीं मिलता। २०५० तक करीब तीन अरब लोग बिन पानी या कम पानी में गुजारा कर रहे होंगे। 2025 तक भारत के करीब 60 फीसदी भूजल स्रोत पूरी तरह सूख चुके होंगे।
स्वास्थ्य संकट : धरती पर अभी जीव-जंतुओं की करीब एक करोड़ प्रजातियां हैं। अगले 20 साल में आधी ही बचेंगीं। बदलते मौसम, बढ़ते तापमान, प्रदूषण आदि से कुछ अज्ञात जीव-जंतु पैदा हो सकते हैं। ये मानव स्वास्थ्य के लिए बड़ा संकट होंगीं।
मैं क्या कर सकता हूं?
अगर देश के 40-50 करोड़ युवा ही हर महीने सिर्फ एक पौधा लगाएं तो हर साल कितने पौधे लग जाएंगे? यही कोई 480 करोड़ के करीब।
घर या ऑफिस में अक्सर कंप्यूटर, टीवी, फ्रिज जैसे उपकरण स्टैंड बाई मोड पर रहने से करीब 10 फीसदी बिजली बर्बाद होती है। इन उपकरणों को मेन स्विच से बंद कर ऊर्जा बचाई जा सकती है।
ठ्ठ पुराने बल्ब और ट्यूबलाइटों की जगह सीएफएल और एलईडी का इस्तेमाल करें। सीएफएल और एलईडी ऊर्जा खपत के मामले में बल्ब व ट्यूबलाइट की तुलना में 4 गुना किफायती हैं।
फैक्ट्री से गीजर में 60 डिग्री तापमान सैट होता है। जबकि नहाने लायक पानी सिर्फ 40 डिग्री पर ही गर्म हो जाता है। गीजर को इस हिसाब से सैट कर सालाना प्रति गीजर 172 किलोग्राम कार्बन उत्सर्जन कम कर सकते हैं।
गर्मियों में एयरकंडीशनर को 25-26 डिग्री के आसपास औसत तापमान पर नियमित रखें। सामान्य तौर पर एसी 22 डिग्री से ऊपर तापमान की सैटिंग पर प्रति डिग्री 3 से 5 फीसदी ऊर्जा की बचत करते हैं।
गर्म पानी की तुलना में ठंडे पानी में वाशिंग मशीन 4 गुना तक बेहतर काम करती हैं। मतलब, वाशिंग मशीन में ठंडे पानी से कपड़े धोना किफायती है।
ऊर्जा की बचत करने वाले स्टार रेटेड उपकरणों की खरीद और इस्तेमाल से 2013 तक 5,700 करोड़ यूनिट बिजली की बचत की जा सकती है। प्रयास एनर्जी ग्रुप, पुणे के अध्ययन के अनुसार, ऐसा करके करीब 50 मीट्रिक टन कार्बन उत्सर्जन रुक सकता है।
अपने वाहन की छह महीने में बेसिक और सालभर में पूरी सर्विस कराएं। प्रदूषण रुकेगा और ईंधन बचेगा। अपेक्षाकृत किफायती कार पूल और पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करें।
पानी का किफायत से इस्तेमाल करें। पॉलीथिन के उपयोग से बचें। भारतीय परिवारों में रोजाना निकलने वाला करीब 20 फीसदी कचरा पर्यावरण के लिए नुकसानदायक होता है।
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