देश की परमाणु विनियमन व्यवस्था की विश्वसनीयता स्थापित करने की दिशा में केंद्र सरकार की ताजा पहल महत्वपूर्ण है। अगर सचमुच वादे के मुताबिक कदम उठाए गए तो उससे परमाणु व्यवस्था को जवाबदेह और पारदर्शी बनाया जा सकेगा।
भारत, बल्कि पूरी दुनिया में, परमाणु कार्यक्रम को संचालित करने वाली व्यवस्था की सबसे कड़ी आलोचना यही है कि यह तंत्र लोकतांत्रिक जवाबदेही से परे रहते हुए और घोर गोपनीयता के बीच काम करता है। अब सरकार ने संसद से पास विधेयक के जरिए परमाणु ऊर्जा विनियमन बोर्ड के गठन का फैसला किया है। यानी यह एक वैधानिक संस्था होगी, जो संसद के प्रति जवाबदेह रहेगी।
भविष्य में परमाणु ऊर्जा संबंधी परियोजनाओं को अंतिम रूप यही संस्था देगी और जाहिर है, उसकी बारीकियों पर संसद में बहस हो सकेगी, संसद की स्थायी समिति उस पर विचार कर सकेगी और संस्था से बाहर के वैज्ञानिक एवं विशेषज्ञ उसकी जांच-परख कर उसमें अपना योगदान दे सकेंगे। साथ ही सुलग रहे जैतापुर में लगने वाले सभी छह रिएक्टरों के लिए अलग सुरक्षा व्यवस्था और संचालन एवं रखरखाव प्रणाली लागू करने का एलान किया है। मगर कुछ प्रश्न अनुत्तरित हैं।
उनका संबंध संयंत्र लगाने के लिए जमीन अधिग्रहण और संबंधित इलाके के आसपास के लोगों की आजीविका संबंधी चिंताओं से है। जैतापुर के मछुआरे डरे हुए हैं कि प्रस्तावित परमाणु पार्क के असर से निकट समुद्र में मछली मारना कठिन हो जाएगा, जबकि उनके लिए मुआवजे या पुनर्वास की व्यवस्था नहीं है।
बेहतर होता, सरकार समग्र नीति पेश करती, जिसमें परमाणु सुरक्षा के साथ-साथ उस प्रभावित आबादी की आजीविका संबंधी चिंताओं का भी हल होता, जिसकी जमीन सीधे तौर पर परियोजना के लिए अधिगृहीत नहीं होने वाली है। देश को परमाणु ऊर्जा संबंधी अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करनी है तो समग्र नीति ज्यादा समय नहीं टाली जा सकती।
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