Sunday, May 8, 2011

भारत-अमेरिका संबंधों का नया अध्याय

विश्व के राजनीतिक परिदृश्य पर भारत और अमेरिका लंबे समय तक अलग-अलग गुटों में रहे। जब रशिया और अमेरिका विश्व की दो सबसे बड़ी ताकतें थीं, तब विकासशील भारत रशिया के खेमे में था। शीतयुद्ध के बाद दुनिया काफी बदल गई है और अमेरिका भी अब इतना ताकतवर नहीं रहा।

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की भारत यात्रा के शुरुआती दो दिनों को इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए। ओबामा ने भारत की आर्थिक शक्ति और यहां व्यापार की संभावनाओं को जिस खूबी से पहचाना है, वह पहले दिन हुए व्यापारिक करारों की भरमार में साफ झलका है। पहले भारत अमेरिका की ओर अदब से देखता था, लेकिन अब अमेरिका भारत से मदद चाह रहा है।

भारत के इतिहास में यह बड़ी घटना है। इसके अच्छे दूरगामी परिणाम आने वाले दिनों में दिखेंगे। अमेरिका-भारत अलग-अलग क्षेत्रों में कंधे से कंधा मिलाकर विकास की राह पर चलेंगे, यह कुछ वर्ष पूर्व किसी ने सोचा नहीं था। ओबामा की भारत यात्रा के पहले दिन दोनों देशों में करीब 44 हजार करोड़ रुपयों के करार हुए हैं, जिससे अमेरिका में 50 हजार नौकरियां पैदा होंगी। भारत के कारण अमेरिका में इतनी बड़ी संख्या में नौकरियां पैदा होने का यह पहला और असाधारण अनुभव है।

अमेरिका पहले भी विमान, उन्नत तकनीक, शस्त्र, इंजिन आदि भारत को बेचता रहा है, लेकिन तब भारत याचक की मुद्रा में रहता था। बदली परिस्थितियों में भारत अमेरिका के समकक्ष तो आज नहीं दिखता, पर वैश्विक कैनवास पर अमेरिका के साथ अलग धरातल पर बात करने की ताकत तो आज हममें दिखती है।

दोनों देशों में व्यापार बढ़ने के साथ ही सामरिक समझ भी बढ़ रही है। भारत एक बड़ा बाजार है। यहां का मध्यम वर्ग तेजी से बढ़ रहा है। उधर अमेरिका आर्थिक मंदी से अभी पूरी तरह उबर नहीं सका है। ऐसे में भारत का सहयोग लेना अमेरिका के लिए जरूरी है। चीन का बढ़ता दबदबा भी एक अन्य कारण है।

मुंबई में ओबामा एक ठेठ व्यापारी (नई परिभाषा में सीईओ) की भूमिका में थे। उनके साथ अमेरिका के धनाढच्य उद्योगपति भी आए हैं और उन्होंने ही भारतीय उद्योग समूहों के साथ करार किए हैं। दिल्ली में ओबामा का दूसरा राजनीतिक रूप दिखेगा। यह अच्छा संदेश है कि अमेरिका के साथ भारत की साझेदारी विकसित होने की राह पर है, फिर भी भारत के लिए संभलकर चलना ही बेहतर होगा।

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