देश से ‘विशाल मात्रा’ में लूटे गए और अब विदेशी बैंकों में जमा धन को लेकर जब सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को कड़ी फटकार लगाई, उसके कुछ ही देर बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने साफ कह दिया कि जिन भारतीय नागरिकों के खाते विदेशी बैंकों में हैं, उनके नाम सार्वजनिक नहीं किए जा सकते। उन्होंने यह भी कहा कि इस धन को देश में वापस लाने का कोई फौरी तरीका नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट में सरकार की तरफ से ऐसी ही दलीलें सॉलिसीटर जनरल गोपाल सुब्रrाण्यम ने पेश कीं। मसलन, सरकार को अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की नजाकत, बैंकिंग गोपनीयता कानूनों और दोहरे कराधान से बचने के समझौतों का ख्याल करना है। लेकिन ये दलीलें अदालत को संतुष्ट नहीं कर सकीं और माननीय खंडपीठ ने सीधा सवाल पूछा कि आखिर सरकार ने विदेशों में जमा धन का पता लगाने और उसे वापस लाने के लिए क्या कदम उठाए हैं?
कोर्ट ने ध्यान दिलाया कि यह रकम खरबों में है और पूछा कि आखिर उसमें कुल कितने शून्य मौजूद हैं? यह सरकार के रुख से अदालत के असंतोष की ही झलक है कि माननीय न्यायाधीशों को यह याद दिलाना पड़ा कि सुनवाई लोकहित के मामले पर हो रही है और सुप्रीम कोर्ट को लोकहित से जुड़े सवाल पूछने से कोई नहीं रोक सकता। अब सरकार के लिए यह अपनी अंतरात्मा में झांकने का विषय है कि ऐसे अहम मुद्दे पर वह आज कठघरे में खड़ी क्यों नजर आ रही है।
गौरतलब है कि केंद्रीय सतर्कता आयुक्त पीजे थॉमस की नियुक्ति के मामले में भी यूपीए सरकार सुप्रीम कोर्ट के साथ टकराव के रास्ते पर चलती नजर आई है। खुद प्रधानमंत्री का यह प्रिय जुमला है कि सीजर की पत्नी को संदेहों से परे होना चाहिए? क्या उनकी सरकार को आज भ्रष्टाचार जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे पर संदेहों से ऊपर माना जा सकता है, यह उनके और उनकी पार्टी के नेताओं से लिए गहन आत्ममंथन का विषय है।
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