Sunday, May 8, 2011

कठघरे में पाकिस्तान

ओसामा के मारे जाने के बाद अब दुनिया के सामने सबसे रहस्यमय सवाल यही है कि क्या पाकिस्तानी अधिकारियों ने उसे छिपा रखा था? भारत में तो यह मान्यता लंबे समय से रही है कि पाकिस्तान सोची-समझी रणनीति के तहत आतंकवादियों को पनाह देता है। मगर अब यह सवाल पूरी दुनिया पूछ रही है कि क्या पाकिस्तान के सैनिक एवं खुफिया तंत्र ने अमेरिका के साथ भी दोहरा खेल खेला? एक तरफ वे अलकायदा के आतंकवादियों को मारने या पकड़ने में मदद के नाम पर अमेरिका से अरबों डॉलर वसूलते रहे, दूसरी तरफ आतंकवादियों के सबसे बड़े सरगना को अपने एक सुरक्षित इलाके में तमाम सुविधाओं के साथ शरण दी?

आखिर ओसामा जहां मारा गया, वह कोई वजीरिस्तान के निर्जन प्रदेश की गुफा नहीं थी, बल्कि वह राजधानी इस्लामाबाद से तकरीबन ५क् किमी दूर पर्यटन स्थल शहर एबटाबाद है। उसका निवास पाकिस्तान की सैन्य अकादमी से महज 800 मीटर की दूरी पर था। पाकिस्तान के सैनिक एवं खुफिया तंत्र का एक हिस्सा आतंकवादियों को पनाह देता है, यह बात कुछ ही दिन पहले अमेरिकी सेनाध्यक्ष माइक मलेन ने पाकिस्तान जाकर सार्वजनिक रूप से कही थी। पश्चिमी मीडिया में आईएसआई के डबल गेम की कहानियां अक्सर छपती रही हैं।

आरोप रहा है कि अलकायदा के खिलाफ कार्रवाई कर पाकिस्तान खुद को पश्चिम के दोस्त के रूप में पेश करता है, मगर तालिबान और हक्कानी गुटों को संरक्षण भी दिए रहता है। तब शायद यह मालूम नहीं था कि अमेरिका ने दस साल, खरबों डॉलर और सैकड़ों सैनिकों की जान जिस ओसामा की तलाश में गंवाई, वह भी पाकिस्तान का ही मेहमान था। अब सच्चाई सामने है। पाकिस्तान के पास मुंह छिपाने को कोई नकाब नहीं है और दुनिया के सामने सवाल है कि वह आतंक की इस पनाहगाह से कैसे निपटे?


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