
नई दिल्ली. अमेरिका के लिए ओसामा बिन लादेन दुश्मन नंबर एक था। 11 सितंबर, 2001 को अमेरिका पर हुए आतंकी हमले के बाद वह अमेरीकी ख़ुफ़िया एजेंसी सीआईए के लिए सर्वाधिक वांछित व्यक्ति था। दूसरी ओर, वह अरब देशों के कई युवकों के लिए हीरो था।
कई अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घटनाओं के लिए अमेरिका को ओसामा और उसके साथियों की तलाश थी।
इनमें वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले के अलावा 1998 में अफ़्रीका में अमरीकी दूतावासों पर बम से किया गया हमला और सन् 2000 में यमन में अमरीकी युद्धपोत यूएसएस कोल पर किया गया हमला शामिल है। दस साल से अमेरिका ओसामा को जिंदा या मुर्दा पकड़ने पर अरबों डॉलर खर्च कर चुका है।
ओसामा बिन लादेन के पास अथाह संपत्ति है। उसने अफगानिस्तान में तालेबानी अभियान को संरक्षण दे रखा था। उसने अमेरिका के ख़िलाफ़ 'पवित्र युद्ध' और अमेरीकियों और यहूदियों को मारने का आह्वान किया था।
इस्लामिक ट्रेनिंग सेंटरों की स्थापना में सहयोग देने का भी ओसामा पर शक है। इनकी मदद से चेचेन्या और पूर्व सोवियत संघ के कई हिस्सों में लड़ाई के लिए योद्धा तैयार किए जाते हैं।
कहा जाता है कि ओसामा के आसपास कोई तीन हज़ार लड़ाकों की फ़ौज होती थी।
अथाह संपत्ति
ओसामा की ताक़त की बुनियाद बनी उसके परिवार द्वारा सऊदी अरब में निर्माण कार्यों के धंधे से अर्जित की गई संपत्ति।
सऊदी अरब में एक यमन परिवार में पैदा हुए ओसामा बिन लादेन ने अफगानिस्तान पर सोवियत हमले के ख़िलाफ़ लड़ाई में हिस्सा लेने के लिए 1979 में सऊदी अरब छोड़ दिया।
कई जानकार मानते हैं कि ओसामा को ट्रेनिंग सीआईए ने ही दी थी।
अफ़ग़ानिस्तान में ओसामा ने मक्तब-अल-ख़िदमत की स्थापना की, जिसमें दुनिया भर से लोगों की भर्ती की गई और सोवियत फ़ौजों से लड़ने के लिए उपकरणों का आयात किया गया।
धर्म का तिरस्कार करने वाली एक विचारधारा के ख़िलाफ़ लड़ाई में अफ़गानी मुस्लिम भाइयों का साथ देने के लिए मिस्र, लेबनान और तुर्की से हज़ारों लोग बिन लादेन के साथ आ गए।
अमरीका के ख़िलाफ़
ओसामा बिन लादेन के ग्रुप को 'अरब अफ़गान' के नाम से जाना जाने लगा था।
सोवियत सेना के लौट जाने के बाद 'अरब अफ़गान' अमरीका और मध्य पूर्व में उसके सहयोगियों के ख़िलाफ़ जुट गए।
ओसामा बिन लादेन अपना पारिवारिक व्यवसाय संभालने के लिए सऊदी अरब लौट गया, पर 1991 में सरकार विरोधी गतिविधियों के कारण निष्कासित कर दिया गया।
इसके बाद पांच साल तक वह सूडान में रहा और जब अमरीका के दबाव में सूडानी सरकार ने भी उसे निकाल दिया तो वह अफ़ग़ानिस्तान लौट गया।
अमेरिका का कहना है कि ओसामा तीन बड़े हमलों में शामिल था। एक 1993 में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में हुई बमबारी, दूसरा 1996 में सऊदी अरब में 19 अमरीकी सैनिकों की हत्या और तीसरा 1998 में कीनिया और तंज़ानिया में हुई बमबारी।
11 सितंबर, 2001 को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले ने तो उसे अमेरिका के लिए अतिवांछित बना ही दिया था।
जानकार मानते हैं कि ओसामा का ग्रुप अपहरण और बमों से हमले करने वाले अन्य ग्रुपों से अलग है क्योंकि वह एक सुगठित ढाँचे वाला ग्रुप न होकर कई महाद्वीपों में काम कर रहे कई ग्रुपों का गठबंधन है। अमेरिकी अधिकारी मानते हैं कि ओसामा बिन लादेन के सहयोगी, यूरोप, उत्तरी अमरीका, मध्य पूर्व और एशिया के 40 से भी अधिक देशों में सक्रिय हैं।
ओसामा से मिलने वाले लोगों के मुताबिक वह बहुत कम बोलने वाला, शर्मीला किस्म का इंसान था। माना जाता है कि उसकी तीन पत्नियाँ हैं।
ओसामा का ठिकाना
11 सितंबर 2001 के बाद से ही ये अटकलें लगाई जाती रही थी कि वह कहां है। पाकिस्तान को उसका संभावित ठिकाना बताया गया। कई बार यह दावा भी किया गया कि वह मारा जा चुका है। पर उसकी ओर से समय-समय पर अपने संदेश वाले टेप भिजवाकर इन दावों को झूठा साबित किया गया।
अमरीकी अधिकारियों को हमेशा यही लगता रहा कि ओसामा अफ़ग़ानिस्तान-पाकिस्तान सीमा पर कहीं छिपा है। हालांकि पाकिस्तान इसका खंडन करता रहा, लेकिन अब खबर आ रही है कि उसकी मौत पाकिस्तान में ही हुई। ऐसे में पाकिस्तान की भी पोल खुल गई है। .
अमरीका ने ओसामा के ठिकाने के बारे में जानकारी देने वाले को ढ़ाई करोड़ डॉलर का इनाम देने की घोषणा कर रखी थी।
D.B.07-05-2011
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