सबसे बड़ी कंपनियों के सीईओ और मुख्य वित्तीय अधिकारी अगर यह मानते हों कि देश के मौजूदा कानून तथा सरकारी उपाय घूसखोरी रोकने में सक्षम नहीं हैं तो देश के आर्थिक भविष्य को लेकर गहरा रही मायूसी का अंदाजा लगाया जा सकता है। इन अधिकारियों की राय है कि घोटालों की बढ़ती संख्या से एक विकसित होती अर्थव्यवस्था के रूप में भारत की छवि पर दाग लगा है। कंसल्टेंसी फर्म केपीएमजी के एक सर्वे में 100 बड़ी कंपनियों के अधिकारियों ने बेलाग कहा कि बढ़ते भ्रष्टाचार के कारण उनके लिए अपनी कंपनियों में विदेशी निवेश लाना मुश्किल साबित होने लगा है।
बहरहाल, अब कॉरपोरेट जगत भ्रष्टाचार जारी रहने या बढ़ने में अपनी भूमिका स्वीकार करने को तैयार दिख रहा है। एचडीएफसी के चेयरमैन दीपक पारेख के बाद अब इस सर्वे में 68 फीसदी अधिकारियों ने माना कि कंपनियां भी अपने फायदे के लिए रिश्वत से सरकारी अधिकारियों को लुभाती हैं। चूंकि भारत में कानून घूस लेने वालों को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं, इसलिए कंपनियों को भ्रष्ट तरीके अपनाने में दिक्कत महसूस नहीं होती। सवाल है कि भ्रष्टाचार निरोधक कानूनों पर कारगर अमल क्यों नहीं होता?
बड़ी कंपनियों के अधिकारियों में 20 फीसदी इसका कारण राजनीतिक हस्तक्षेप को ठहराते हैं, जबकि 18 फीसदी न्यायिक फैसलों में देरी को 15 प्रतिशत कड़े जुर्माने के अभाव और 14 प्रतिशत अधिकारी जांच की जिम्मेदारी अलग-अलग एजेंसियों के हाथ में होने को मानते हैं। सर्वे में उभरी एक और दिलचस्प राय यह है कि कॉरपोरेट सेक्टर में सबसे ज्यादा भ्रष्ट क्षेत्र रियल एस्टेट, कंस्ट्रक्शन और दूरसंचार हैं। बहरहाल, सर्वे रिपोर्ट के इस निष्कर्ष पर जरूर ध्यान दिया जाना चाहिए - ‘जिस समय भारत नौ फीसदी विकास दर का लक्ष्य लेकर चल रहा है, बढ़ते भ्रष्टाचार के कारण कड़ी मेहनत से हासिल सफलता पर अब काले बादल मंडराने लगे हैं।’
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