Sunday, May 8, 2011

वह महज इत्तफाक नहीं था

कई साल पहले की बात है। मैं मुंबई मैं था और प्रेसिडेंट होटल में ठहरा था। होटल की खिड़कियों से समुद्र का खूबसूरत नजारा दिखता था। मुझे टॉप फ्लोर पर एक कमरा दिया गया। कमरे की खिड़की से मैं मुंबई की तटरेखा को देख सकता था। साथ ही मैं समुद्र की सतह पर तैरते जहाजों और नावों को भी निहार सकता था। एक दोपहर मैंने सोचा कि ग्राउंड फ्लोर पर जाकर होटल की बुकशॉप से कुछ किताबें लेनी चाहिए। जैसे ही मैं नीचे जाने के लिए कमरे से निकला, कॉरिडोर में मैंने दो बुजुर्ग यूरोपियन महिलाओं को ऊहापोह की स्थिति में देखा। उनमें से एक ने मुझसे कहा : ‘एक्सक्यूज मी, क्या आप जानते हैं कि छत पर जाने का रास्ता कहां से है? हम देखना चाहते हैं कि मुंबई का समुद्र तट यहां से कैसा नजर आता है। हमारा कमरा निचले फ्लोर पर है और वहां से केवल फ्लैटों के ब्लॉक ही दिखाई देते हैं।’

मैंने जवाब दिया : ‘मुझे मालूम नहीं छत पर जाने का रास्ता कहां से है, लेकिन आप मेरे कमरे की खिड़की से समुद्र का खूबसूरत नजारा देख सकती हैं।’ मैंने कमरे का दरवाजा खोला और उन महिलाओं को भीतर बुला लिया। उन्होंने जी भरकर समुद्र को निहारा। उसके बाद हम बातें करने लगे। मैंने उनसे पूछा : ‘आप कहां से आई हैं?’ उन्होंने जवाब दिया : ‘इंग्लैंड।’ मैंने पूछा : ‘इंग्लैंड में कहां से?’ उन्होंने कहा : ‘हर्टफोर्डशायर से।’ मैंने फिर पूछा : ‘हर्टफोर्डशायर में कहां से?’ उन्होंने जवाब दिया : ‘वेल्विन गार्डन सिटी। क्या आप उसके बारे में जानते हैं?’

मैंने जवाब दिया : ‘न सिर्फ जानता हूं, बल्कि मैं वहां तीन साल रहा भी हूं। उन दिनों मैं लंदन में कानून की पढ़ाई कर रहा था।’ अब उन महिलाओं ने मुझसे पूछा : ‘क्या आप वहां डेलकॉट टेनिस क्लब के सदस्य थे?’ मैंने कहा : ‘जी हां। वास्तव में गर्मियों के दौरान मेरी अधिकांश शामें डेलकॉट टेनिस क्लब में ही गुजरती थीं।’ अब हैरान होने की बारी उन महिलाओं की थी। उन्होंने मुझसे पूछा : ‘क्या आप मिस्टर सिंह हैं?’

मैंने आश्चर्यचकित होकर जवाब दिया : ‘हां, मैं खुशवंत सिंह हूं, लेकिन आपको कैसे पता?’ उनमें से एक महिला ने कहा : ‘शायद आपको अब याद नहीं, लेकिन मैंने कई बार आपके साथ टेनिस खेला है!’

मैं इस घटना को कभी भुला नहीं पाया। यह महज एक इत्तफाक ही नहीं था। यह इत्तफाक से भी कहीं ज्यादा था। इतने सालों बाद उस महिला से मेरी भेंट हुई थी। वह उसी होटल में ठहरी थी, जहां मैं ठहरा था। वह उसी कॉरिडोर में टहल रही थी, जहां से होकर मैं नीचे की ओर जाने वाला था। हमारी मुलाकात हुई, हमने बातें की और आखिरकार हमने एक-दूसरे को पहचान लिया। जब कभी इस तरह के इत्तेफाकों से हमारा सामना होता है तो हमें महसूस होता है कि कोई न कोई अज्ञात ताकत ऐसी है, जो हमें बार-बार यह अहसास कराती है कि ज्ञात घटनाओं के पीछे भी कुछ अज्ञात कारण होते हैं। वे कारण हमें ऊपर से नजर नहीं आते, लेकिन वास्तव में घटनाएं कहीं न कहीं आपस में जुड़ी होती हैं।
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कवि उत्पल दत्त
अगस्त 1993 में जब उत्पल दत्त की मृत्यु हुई, तब वे 64 वर्ष के थे। उन्होंने फिल्म जगत में एक अभिनेता, निर्देशक और संगीतकार के रूप में ख्याति अर्जित की थी। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि वे कविताएं भी लिखते थे। उनकी मृत्यु के बाद उनके करीबी मित्रों ने उनकी कुछ कविताओं का बांग्ला से अंग्रेजी में अनुवाद किया। ये अनुवाद सबसे पहले वर्ष 1996 में छपे। बांग्ला में उनकी कविताओं के संकलन का शीर्षक था : दिन बदलेर कोबिता। शंकर सेन द्वारा किए गए अंग्रेजी अनुवाद का शीर्षक था : पोएट्री ऑफ चेंजिंग टाइम्स। मैंने इस संकलन से यह कविता चुनी है, जो अपने शहर से बेहद प्यार करने वाले व्यक्तियों की भावनाओं को प्रदर्शित करती है।
कविता का शीर्षक है : ‘कोलकाता का गीत : एक’
मेरे प्यारे शहर पर लगाए जाएंगे
और कितने इल्जाम?
कब तक पुकारा जाएगा उसे
बदनुमा गलियों की बस्ती?
मेरे शहर के कपड़ों पर लगे हैं धब्बे
मैली हो चुकी हैं आस्तीनें उसकी।
कुछ ने कहा यह सौदागरों का शहर है
कुछ ने कहा दुस्वप्नों का शहर।
लेकिन मैं देख सकता हूं
इस शहर का एक उदास चेहरा।
वह मेरी रातों का पनाहगाह है
और मेरे दिनों की रोशनी।
यह शहर पोंछ देता है
मेरे माथे का पसीना
अपने सतर्क हाथों से।
मैं प्यार करता हूं मेरे शहर
मेरे कोलकाता से।
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पीने का सलीका
बंता ने संता से कहा : मेरे दादाजी 96 साल के हो गए थे, फिर भी उन्होंने कभी ग्लासेस (चश्मे) का इस्तेमाल नहीं किया।
संता ने जवाब दिया : मैं जानता हूं वे ग्लासेस (गिलास) का इस्तेमाल क्यों नहीं करते थे, क्योंकि वे सीधे बोतल से ही शराब पीने में विश्वास रखते थे!
(सौजन्य : जेपी सिंह काका, भोपाल)

खुशवंत सिंह
लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं।

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