घर बचाना है, तो नवविवाहिताएं मोबाइल फोन का इस्तेमाल न करें। फोन पर ज्यादा बात करने से ससुराल में बखेड़ा खड़ा होता है और कई बार ससुराल वालों को शक होता है कि नई आई दुल्हन अपने किसी पूर्व प्रेमी से बात कर रही है।
पत्नियों को अपने ससुराल में ज्यादा एडजस्ट करना सीखना चाहिए। खासकर शादी के बाद पहले दो वर्षो में, जो किसी विवाह के कामयाब होने के लिए महत्वपूर्ण अवधि होती है। जबकि दुल्हनों के माता-पिता को सलाह है कि वे अपनी बेटी के घर में दखल न दें। नहीं, ये किसी रूढ़िवादी नेता के विचार नहीं हैं।
ये पंजाब राज्य महिला आयोग के विचार हैं, जो उसने राज्य में तलाक की बढ़ती समस्या के समाधान के लिए सुझाए हैं। समाधान के पीछे की सोच सरल है। महिलाएं अपने बचपन, अपने परिवार और अपने अतीत को भूल जाएं और अपने अस्तित्व का पति के परिवार में संपूर्ण विलय कर दें।
इस सोच में कोई नई बात नहीं है। यही तो पितृसत्तात्मक व्यवस्था का आधार है। समाज में ज्यादातर लोग आज भी इस सोच से प्रेरित हैं। मगर विडंबना यह है कि इस बार ये सुझाव एक राज्य के महिला आयोग की तरफ से आए हैं, जिसका काम महिलाओं के अधिकारों की रक्षा और उनके लिए सामाजिक स्थितियों को ज्यादा अनुकूल बनाना माना जाता है।
समता और आधुनिकता की तलाश में हर समाज को कभी न कभी तलाक एवं परिवारों के विखंडन जैसी समस्याओं से गुजरना पड़ा है। ये समस्याएं पैदा न हों, परिवार में शांति बनी रहे, यह वांछित है, मगर इसकी कीमत सिर्फ एक पक्ष को चुकानी पड़े, यह सोच समस्यामूलक है।
संयम बरतना और समझौते करना अपने आप में कोई बुरी बात नहीं है, मगर अपेक्षा यही रहनी चाहिए कि ऐसा पारस्परिक हो। भारतीय संविधान और कानून समता की ऐसी ही भावना पर आधारित हैं। इस भावना के विपरीत जाकर पुरातन सोच की स्थापना की कोशिशें दुखद हैं।
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