भ्रष्टाचार पर कभी लगाम लगी, तो ऐसा संस्थागत व्यवस्था के मजबूत होने से ही होगा। इस दिशा में कुछ आशाजनक संकेत मिल रहे हैं। खबर है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने विदेशी अधिकारियों और निजी क्षेत्र को भ्रष्टाचार निरोधक कानून के दायरे में लाने के प्रस्तावों को मंजूरी दे दी है। इसके लिए विधेयक का अंतिम प्रारूप तैयार होना है, लेकिन कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के जिस प्रस्ताव को फिलहाल हरी झंडी दी गई है, उसके मुताबिक नए कानून का खास पहलू यह होगा कि इसके जरिए घूस लेना और देना दोनों को अपराध बना दिया जाएगा। यहां तक कि घूस लेने या देने के लिए प्रोत्साहित करना भी जुर्म हो जाएगा।
इसके साथ ही सरकार ने संयुक्त राष्ट्र की भ्रष्टाचार विरोधी संधि का भी अनुमोदन करने का फैसला किया है, जिस पर भारत ने 2005 में दस्तखत किए थे। इतने समय तक अनुमोदन न करने के पीछे दलील दी जाती रही कि इस संधि को लागू करने के लिए आवश्यक कानूनी व्यवस्था देश में नहीं है। हालांकि यह जवाब देने की कोशिश कभी नहीं की गई कि यह व्यवस्था न होने के लिए जिम्मेदार कौन है? बहरहाल, एक और सकारात्मक घटना पिछले दिनों यह हुई कि केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय ने नए केंद्रीय सतर्कता आयुक्त की नियुक्ति प्रक्रिया के बारे में सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के मुताबिक आदेश जारी किए।
कह सकते हैं कि यूपीए सरकार ये सारी पहल इसलिए कर रही है, क्योंकि पिछले कई महीनों से वह घोटालों के लगातार खुलासों से राजनीतिक रूप से घिरती चली गई है। संभव है कि यह मनमोहन सरकार की अपनी छवि और साख बहाल करने की एक कोशिश हो। लेकिन इस घटनाक्रम का सकारात्मक पक्ष यह है कि इससे देश में भ्रष्टाचार विरोधी संस्थाएं और कानूनी व्यवस्था मजबूत होगी। इनका एक नतीजा यह हो सकता है कि पीजे थॉमस जैसे प्रकरण से देश को दोबारा न गुजरना पड़े।
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