Sunday, May 8, 2011

उद्यम और विकास का उत्सव

पिछले हफ्ते मुझे जीसीसीआई (गुजरात चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री) की युवा इकाई ने एक सम्मान समारोह के लिए अहमदाबाद बुलाया था। मैंने गुजरात के विभिन्न औद्योगिक निकायों के जबरदस्त उत्साह को हमेशा महसूस किया है, जो युवाओं के लिए कॅरियर मेले, कारोबारी योजना प्रतिस्पर्धाएं, मेंटोरशिप प्रोग्राम व उद्यमिता मार्गदर्शन इकाइयों जैसे अनेक कार्यक्रम चलाते रहते हैं। कार्यक्रम बहुत सादगीपूर्ण था। इसमें कुछ वक्ताओं ने गुजरात के विकास पर अपने विचार व्यक्त किए। आर्थिक विकास के आंकड़े जबरदस्त थे। वहां विकास जमीनी स्तर पर भी हो रहा है। जहां पिछले दस वर्षो के दौरान भारत की औसत कृषि विकास दर 2.5 फीसदी रही (सरकार का लक्ष्य 4 फीसदी का था), वहीं गुजरात की कृषि व्यवस्था जबरदस्त ढंग से 9.8 फीसदी की दर से आगे बढ़ी।

यह कार्यक्रम एक ही एजेंडे पर केंद्रित था - विकास। उद्योगपति, राजनेता और आईएएस अफसरों में से किसी ने भी विकास के अलावा किसी अन्य विषय के बारे में ज्यादा बात नहीं की। यह देखना सुखद था कि हमारे देश का एक हिस्सा बहुत अच्छा काम कर रहा है। हालांकि वहां कार्यक्रम में कोई और भी था, जिसकी मौजूदगी ही इस आयोजन का रंग बदलने के लिए पर्याप्त थी। कम से कम उन लोगों की नजर में, जो गुजरात के बाहर बैठे हैं। यह शख्स और कोई नहीं, गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी थे। गुजरात के विकास पर बहुत जोशीला भाषण देने वाले मोदी ने इस बात को भी माना कि जो भी उनके पक्ष में खड़ा दिखाई देगा, उस पर समाज के एक खास वर्ग द्वारा हमले किए जाएंगे और तरह-तरह के लांछन लगाए जाएंगे। उन्होंने कहा कि न सिर्फ उनकी तारीफ करने वाले शख्स, बल्कि उस शख्स की भी आलोचना की जाएगी, जिसकी वह खुद तारीफ कर दें।

मेरी बारी आने पर मैंने तटस्थ रहते हुए सारभूत ढंग से अपनी बात रखने की कोशिश की। मैंने कहा कि हमने अन्ना हजारे के आंदोलन में युवा शक्ति की एक झलक देखी, लेकिन इस युवा शक्ति को सकारात्मक लक्ष्यों मसलन उत्कृष्टता, उच्च नैतिक मूल्यों और उद्यमिता की ओर निर्देशित करने की जरूरत है। मैंने इस बात का भी जिक्र किया कि यदि गुजरात अच्छा काम कर रहा है तो मुख्यमंत्री मोदी को राष्ट्रीय स्तर पर भी विकास योजनाओं में शामिल करने पर विचार किया जाना चाहिए क्योंकि हमारे यहां 27 और राज्य भी हैं, जो गुजरात के इस अनुभव का फायदा उठा सकते हैं। मैंने आईपीएल की मिसाल पेश करते हुए इसे हल्के-फुल्के अंदाज में कहा था कि किस तरह किसी आईपीएल टीम में खेलना राष्ट्रीय टीम में खेलने से जुदा है। मुझे नहीं लगता कि मैंने कोई सख्त राजनीतिक टिप्पणी की थी, क्योंकि मैं यह बात अच्छा काम करने वाले किसी भी मुख्यमंत्री के लिए कह सकता हूं। लेकिन कुछ ही मिनटों में मेरा ट्विटर पेज तरह-तरह की टिप्पणियों से भर गया। कुछ लोगों ने लिखा कि मैं मोदी की खुशामद में लग गया, एक जनसंहारक का समर्थन किया और किस तरह आरएसएस का सीक्रेट एजेंट बन गया (क्या आरएसएस इतनी सक्षम है कि सीक्रेट एजेंट पाल सके? क्या वह सीआईए जैसी कोई संस्था है?) उनका यह भी कहना था कि मैंने अपनी सारी विश्वसनीयता खो दी तथा वे अब कभी मेरी बात नहीं सुनना चाहेंगे।

इसके साथ-साथ मेरी तारीफ में भी प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई। किसी ने लिखा कि आखिरकार मैंने अपने दौर के सच्चे नायक का बचाव करने का साहस दिखाया। छद्म धर्मनिरपेक्षतावादी कभी किसी अच्छे नेता को पनपने नहीं देंगे और मुझे अब कभी मोदी से नफरत करने वाले लोगों की बात नहीं सुननी चाहिए। मेरा मानना है कि दोनों तरह का यह चरमपंथी नजरिया गलत है और इस तरह की टिप्पणियां भी बिलकुल गलत हैं कि ‘अब मैं कभी मोदी समर्थकों की बात नहीं सुनूंगा’ या ‘मैं कभी मोदी से नफरत करने वालों की बात नहीं सुनता।’ मैं गोधरा प्रकरण से भलीभांति अवगत हूं। मैंने इस पर एक किताब भी लिखी है और इस प्रक्रिया में इस विषय पर वर्षो शोध किया है। मुझे यह भी पता है कि अब तक इस पर कोई फैसला नहीं आया है। मैं यह भी जानता हूं कि इस तरह की परिस्थिति में कोई फैसला देना कितना मुश्किल है, खासकर तब जबकि इससे कई प्रकरण व दोनों ओर से किए गए भड़काऊ कृत्य जुड़े हों। भले ही सरकार इसमें शामिल थी, लेकिन तथ्य यही है कि बड़ी संख्या में आमजन भी इसमें भागीदार थे और सिर्फ एक शख्स पर तोहमत लगाने या उसे खलनायक बनाने से यह अपराधबोध कभी खत्म नहीं होगा। इसका मतलब यह नहीं कि हम समुचित जांच-पड़ताल न करें। हमें न्याय के लिए जोर लगाना होगा और अपनी न्यायिक प्रक्रिया पर भरोसा रखना होगा।

हालांकि गोधरा के अलावा गुजरात, गुजराती लोगों और उनके मुख्यमंत्री के बारे में कहने को और भी बहुत कुछ है। गुजराती संस्कृति उन चुनिंदा भारतीय संस्कृतियों में से एक है, जो उद्यमिता का जश्न मनाती है और यह हमारे देश की इस वक्त परम जरूरत है। इस राज्य के नए सफल विकास मॉडल को यदि दूसरी जगहों पर भी अपनाया जाए तो नाटकीय ढंग से देश की तकदीर बदल सकती है। हां, अनेक अच्छे काम एक बुराई को नहीं ढंक सकते। लेकिन क्या एक बुराई को अनेक अच्छे कामों को ढांपने में इस्तेमाल किया जाना चाहिए? हम गुजरात के मुख्यमंत्री के समर्थक हों या विरोधी, लेकिन हम सब विकास चाहते हैं और हमें अब कोई नया सांप्रदायिक दंगा नहीं चाहिए। हमें एक-दूसरे की बात सुनने से कभी परहेज नहीं करना चाहिए और इस बात को स्वीकारना चाहिए कि अच्छा व बुरा दुनिया में साथ-साथ चलता है। जीवन में चुनौती अक्सर अच्छे या बुरे के बीच चयन की नहीं होती, वरन यह होती है कि हम कैसे बुराई को हाशिए पर धकेल ज्यादा से ज्यादा अच्छा हासिल कर सकते हैं। आइए हम गुजरात से सीखें कि क्या अच्छा है। वहीं जो कुछ भी बुरा हुआ है, उसके लिए न्याय की अपनी मांग भी जारी रखें।

चेतन भगत
लेखक अंग्रेजी के प्रसिद्ध युवा उपन्यासकार हैं।
db

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