Sunday, May 8, 2011

एक हाईस्कूल के छात्र का देश को चलाना

क्या विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के मुखिया में और हाईस्कूल के छात्र में कोई समानता हो सकती है? जब कोई प्रधानमंत्री अपनी तुलना एक हाईस्कूल छात्र से करता है और उसे बोलना पड़ता है कि उसे एक के बाद एक परीक्षा से गुजरना पड़ रहा है तो उसकी बेबसी पर तरस ही आएगा।

प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने शनिवार को हाईस्कूल के छात्र से अपनी बराबरी कर देश को अचंभित कर दिया। नई दिल्ली में देशी-विदेशी ज्ञानियों और कूटनीति से संबंधित अनेक लोगों के सामने दिया उनका बयान ताजा राजनीतिक दौर में महत्वपूर्ण माना जाना चाहिए।

क्या डॉ सिंह वाकई कड़ी परीक्षा से गुजर रहे हैं? क्या सर्वोच्च पद पर उनके 6-7 वर्ष इतने पीड़ादायक रहे हैं कि उन्हें लगता है कि एक के बाद एक परीक्षा के दौर से (अपने मन के विरुद्ध) गुजरना पड़ रहा है? यदि ऐसा है तो मसला काफी गंभीर है। यह सही है कि प्रधानमंत्री का पद कांटों का ताज है।

इसे हमेशा पहने रहना पड़ता है, जो कष्टप्रद भी है। देश चलाना यूं भी आसान काम नहीं है। फिर यह गठबंधन सरकार है। डॉ सिंह स्वयं सिद्धहस्त (और कुटिल) राजनीतिज्ञ नहीं हैं। इसलिए उन्हें हमेशा कांग्रेस और यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी पर लगभग हर निर्णय के लिए निर्भर रहना पड़ता है। राहुल गांधी भी एक बड़े शक्ति केंद्र हैं।

इन सबके बीच अपनी बात कह पाना निश्चित रूप से इस जाने-माने अर्थशास्त्री के लिए एक परीक्षा से गुजरने जैसा ही होता होगा। डॉ सिंह को देश एक शांत स्वभाव का, सीधा-सादा नेता मानता है, जो कभी स्वयं की इच्छा से प्रधानमंत्री नहीं बनना चाहते थे।

उन्होंने पहली पारी और दूसरी पारी के लगभग दो वर्ष देश की सरकार किस तरह चलाई, इस पर विभिन्न मत हैं। पर यह निश्चित है कि वे देश के इतिहास में सबसे कमजोर, निर्णय लेने में अक्षम और परावलंबी प्रधानमंत्री के रूप में जाने गए हैं।

ऐसे में उनकी निजी पीड़ा कभी न कभी बाहर आना स्वाभाविक है। जिस राजा प्रकरण को लेकर डॉ सिंह ने ऐसा अनपेक्षित बयान दे डाला,उससे उन पर हावी दबावों का पता चलता है। उनके कार्यकाल में भ्रष्टाचार असीमित रूप से बढ़ा।

वे ईमानदार होकर भी कड़ी कार्रवाई किसी के खिलाफ कभी नहीं कर पाए। इस कारण जनता में रोष तो है पर करुणा का भाव ज्यादा दिखता रहा। अब जब स्वयं प्रोफेसर रहे प्रधानमंत्री ही अपने आपको हाईस्कूल तक ले जाना चाहते हैं तो देश का भविष्य क्या होगा, यह सोचना पड़ेगा। ‘हाईस्कूल का यह छात्र’ आगे देश को कैसे चला पाएगा, इसका जवाब तो गठबंधन एवं गांधी परिवार से ही अपेक्षित है।

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