Sunday, May 8, 2011

प्रगतिशील पहल

बच्चों के यौन शोषण को लेकर समाज में आई नई जागरुकता का ही नतीजा है कि सरकार ने ऐसे अपराधों को रोकने के लिए एक प्रगतिशील विधेयक पर अपनी मुहर लगाई है। ऐसे कानून अब तक हमारी दंड प्रक्रिया का हिस्सा नहीं हैं, यह अफसोस की बात है। शायद वजह यही है कि अपने यहां बच्चों और खासकर उनके यौन शोषण को लेकर एक तरह की उदासीनता रही है। बहरहाल, यह संतोष की बात है कि ऐसी कमियों को अब दूर किया जा रहा है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने जिस विधेयक को मंजूरी दी है, उसमें बच्चों के प्रति अपराध की परिभाषा विस्तृत की गई है और इनके लिए सजा के प्रावधानों को ज्यादा सख्त कर दिया गया है। सबसे अच्छी बात यह है कि विश्वास या अधिकार की हैसियत वाले व्यक्तियों द्वारा किए गए ऐसे अपराधों को ज्यादा संगीन जुर्म की श्रेणी में रखने का प्रावधान किया गया है। और अगर अपराध 12 साल से कम उम्र के या विकलांग बच्चों के साथ हुआ हो तो उसे भी ऐसे ही दर्जे में रखा जाएगा।

गौरतलब यह है कि बच्चों से ज्यादातर यौन अपराध अपने ही घरों में, बाल सुरक्षागृहों में या पुलिस या सुरक्षा बलों द्वारा किए जाते हैं। एक और प्रगतिशील प्रावधान यह है कि 16 साल से बड़ी उम्र की युवती से सहमति से बनाए गए यौन संबंध को अपराध मुक्त कर दिया गया है। यह बदले जमाने की जरूरतों के मुताबिक है। बहरहाल, इस पूरे संदर्भ में यह बात जरूर ध्यान में रखने की है कि कानून चाहे कितना ही अच्छा हो, असली चुनौती उस पर ठीक से अमल कराने की होती है। जांच एजेंसियों की कमजोरी या इरादे में कमी की वजह से बहुत से अच्छे कानून अपना मकसद हासिल नहीं कर पाए हैं। बलात्कार एवं दहेज उत्पीड़न के खिलाफ कानून भी इस बात की मिसाल हैं। जाहिर है, अगर ये व्यवस्थाएं अपने पुराने हाल में ही रहीं, तो बच्चों को यौन उत्पीड़न से निजात दिलाने की ताजा कोशिश का हश्र भी शायद बहुत बेहतर नहीं होगा।

No comments:

Post a Comment