Sunday, May 8, 2011

युवाओं की ओर से एक चिट्ठी

प्रिय सोनियाजी, मैं स्वयं कभी खुले पत्रों का हिमायती नहीं रहा। आखिर एक ऐसे पत्र को सार्वजनिक रूप से प्रकाशित करने में क्या तुक है, जिसे किसी एक व्यक्ति के लिए लिखा गया हो? बहरहाल सोनियाजी, मेरे पास आपका ईमेल आईडी नहीं है और मुझे नहीं लगता कि आप फेसबुक पर होंगी (ट्विटर पर तो आप निश्चित ही नहीं हैं)। आपको लिखी जाने वाली नियमित चिट्ठियों को आपके सभासदों से होकर आप तक पहुंचने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता होगा। इसीलिए मुझे खुला पत्र ही सबसे अच्छा विकल्प लगा। लेकिन यहां मैं केवल अपनी ही बातें नहीं कह रहा हूं। ये वे बातें हैं, जो आज देश के अधिकांश युवा महसूस करते हैं।

सीधी-सी बात है : देश भ्रष्टाचार से निजात पाना चाहता है और समाधान चाहे जो हों, उन्हें अमल में लाने के लिए आपको एक निर्णायक भूमिका निभानी होगी। मुझे नहीं लगता कि भ्रष्टाचार में आपकी कोई निजी दिलचस्पी होगी। आप जिस पड़ाव पर हैं, उसमें आपके लिए धन की अहमियत बहुत कम होगी। फिर भी पार्टी चलाने के लिए बड़े पैमाने पर धनराशि की दरकार होती है। इसके कारण राजनेताओं को कुछ नैतिक समझौते भी करने पड़ते हैं। आज भ्रष्टाचार के आंकड़े इस सीमा तक पहुंच चुके हैं कि उनकी गिनती करने में किसी डिजिटल केलकुलेटर को भी खासी मुश्किल हो। एक के बाद एक हो रहे घोटाले बताते हैं कि हमने ऐसा तंत्र रचा है, जिसमें बुराई को प्रोत्साहन दिया जाता है और जहां पहली दुनिया का एक हिस्सा बनने के भारत के स्वप्न को लगातार खतरा बना रहता है।

हाल ही में आपके पुत्र राहुल ने कहा था कि भ्रष्टाचार के कारण आम आदमी तक वैश्वीकरण के लाभ नहीं पहुंच पा रहे हैं। यह पूरी तरह सच है। वास्तव में भ्रष्टाचार न केवल हमारे मौजूदा लाभ को नुकसान पहुंचा रहा है, बल्कि वह देश के नौजवानों के भविष्य की संभावनाओं को भी क्षति पहुंचाता है। एक अर्थ में भ्रष्टाचार आतंकवाद से भी बदतर है। आतंकवादी सड़कों, हवाई अड्डों और पॉवर प्लांटों को निशाना बनाते हैं और निर्दोष नागरिकों की जान लेते हैं। लेकिन एक भ्रष्टाचारी नेता अस्पताल ही नहीं बनने देता, जिसका मतलब यह होता है कि जिन निर्दोष नागरिकों की जानें बचाई जा सकती थीं, उन्हें नहीं बचाया जा सकता।

आपने कहा था कि भ्रष्टाचार एक रोग है। आपकी इस बात से निराशा झलकती है, क्योंकि रोग तो प्राकृतिक कारणों से होता है। लेकिन भ्रष्टाचार के लिए कोई कीटाणु जिम्मेदार नहीं हैं। भ्रष्टाचार की जड़ है निरंकुश सत्ता। इस बात को एक छोटे-से उदाहरण से समझने की कोशिश करते हैं। बिजली का आविष्कार एक महान खोज थी, जिसकी वजह से हमारे घरों में रोशनी हुई और हम सुख-सुविधा के विभिन्न साधनों का उपयोग कर पाए। लेकिन हम तक बिजली पहुंचने से पहले उसे विभिन्न सबस्टेशनों से होकर गुजरना पड़ता है, जहां वोल्टेज और करंट पर नियंत्रण रखा जाता है। यदि बिजली प्रदाय अनियंत्रित हो तो वह हमारे घर में आग भी लगा सकती है। भारत में राजनीतिक तंत्र पूरी तरह निरंकुश है। हमारे सांसदगण अपने आपको कोई जागीरदार समझते हैं। वे अपनी सत्ता का दुरुपयोग करते हुए जो चाहते हैं, करते हैं।

यदि आप इस ‘रोग’ का निदान करना चाहती हैं (जो कि आप कर सकती हैं) तो आपको संसद में एक ‘राजनीतिक उत्तरदायित्व विधेयक’(पॉलिटिकल अकाउंटेबिलिटी बिल) पारित करना होगा। साथ ही भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक स्वतंत्र परिषद भी गठित करनी होगी। यह परिषद किसी नेता के अधीन नहीं होगी, बल्कि उसके पास यह शक्ति होगी कि वह किसी भी राजनेता पर मुकदमा चला सके। पहली दुनिया के तकरीबन सभी देशों में यह व्यवस्था है। जब तक ये बदलाव नहीं किए जाते, तब तक चाहे कितने ही बेहतरीन भाषण दिए जाते रहें, बीमारी बरकरार रहेगी।

दोषी नेताओं को दंडित करना जितना जरूरी है, उतना ही जरूरी यह समझना है कि नेता आखिर भ्रष्टाचार क्यों करते हैं। आपकी पार्टी के कुछ विचार अच्छे हैं, खासतौर पर युवाओं को राजनीति में सक्रिय करने के लिए बड़े पैमाने पर किए जा रहे प्रयास। आपके पुत्र ने पार्टी के इस संदेश को प्रचारित करने के लिए देशभर की यात्रा की है। लेकिन मैं एक सीधा-सा सवाल पूछना चाहता हूं : जब कोई नौजवान युवा कांग्रेस (या किसी भी पार्टी की युवा शाखा) में शामिल होता है तो क्या होता है? पार्टी के लिए अच्छा प्रदर्शन करने के लिए उसे बहुत ऊर्जा खपानी पड़ती है। लेकिन राजनीतिक दलों के यहां औपचारिक वेतन प्रणाली नहीं होती है। ऐसे में वह युवा कैसे अपना जीवनयापन करेगा? निश्चित ही उसके सामने एकमात्र रास्ता यही रह जाता है कि वह छोटा-मोटा भ्रष्टाचार करे। इसी तरह एक युवा धीरे-धीरे भ्रष्ट व्यक्ति बन जाता है। ऐसी स्थिति में क्या आप किसी शिक्षित प्रबुद्ध युवा को यह सलाह देंगी कि वह राजनीति में आए? इसके स्थान पर अगर एक उपयुक्त वेतन प्रणाली अमल में लाई जाए तो आप पाएंगी कि पेशेवर रूप से कुशल युवा आपकी पार्टी जॉइन कर रहे हैं। जब तक ये सुधार नहीं किए जाते, तब तक युवाओं की सहभागिता का नारा बेकार ही साबित होगा। एक अन्य बेतुका नियम है चुनाव प्रचार अभियान में 25 लाख रुपयों की व्यय सीमा। मेरे सांसद मित्र मुझे बताते हैं कि वास्तव में हर संसदीय क्षेत्र में चुनाव प्रचार अभियान में औसतन छह करोड़ रुपए खर्च होते हैं। यह पैसा कहां से आता है? जाहिर है भ्रष्टाचार के बिना यह संभव नहीं। ऐसे में क्या वैध फंडरेजिंग प्रणालियों का निर्धारण नहीं किया जाना चाहिए?

परिस्थितियों को बदलना आसान नहीं होता, लेकिन इसके बावजूद हमें प्रयास करने होते हैं। अन्य किसी भी व्यक्ति की तुलना में आप देश की स्थिति को बदलने में सर्वाधिक सक्षम हैं। करोड़ों युवा आज आपसे यही सवाल पूछ रहे हैं कि क्या आप कोई बदलाव लाएंगी?
भवदीय ‘भारत’

चेतन भगत
लेखक अंग्रेजी के प्रसिद्ध युवा उपन्यासकार हैं।

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