Sunday, May 8, 2011

भारत की नई तस्वीर

इक्कीसवीं सदी का पहला दशक नए भारत के उभार का दशक रहा, इस धारणा को जनगणना-2011 के आंकड़े काफी हद तक पुष्ट करते हैं। हालांकि जनगणना का पूरा ब्योरा आने में अभी एक साल लगेगा, लेकिन शुरुआती आंकड़ों में खुश होने के लिए बहुत कुछ है। 2001-11 की अवधि में भारत की जनसंख्या 18 करोड़ 10 लाख बढ़ गई, लेकिन जनसंख्या वृद्धि दर में तकरीबन चार फीसदी गिरावट आई। आबादी में कुल बढ़ोतरी 1991-2001 की तुलना में दस लाख कम रही। ये आंकड़े बढ़ती जागरूकता के परिचायक हैं और भरोसा देते हैं कि दो-तीन दशक पहले जनसंख्या विस्फोट का जो अंदेशा जताया जाता था, उसे नियंत्रित करने में हम काफी हद तक कामयाब रहे हैं।इसी तरह कुल साक्षरता की दर 64 से बढ़कर 74 फीसदी हो गई है।

गौरतलब है कि जहां पुरुषों में साक्षरता वृद्धि की दर 7 फीसदी रही, वहीं स्त्रियों में यह बढ़ोतरी तकरीबन 12 फीसदी हुई। आबादी में स्त्रियों की कुल मौजूदगी प्रति 1000 पुरुष पर अब 933 से बढ़कर 940 है, जो महिलाओं की सेहत एवं समाज में उनकी स्थिति में सुधार की झलक देता है। मगर चिंताजनक पहलू छह साल से कम उम्र के वर्ग में प्रति 1000 लड़कों पर लड़कियों का महज 914 रह जाना है, जो कन्या भ्रूण हत्या की बढ़ती प्रवृत्ति और बेटे को प्राथमिकता दिए जाने की ओर इशारा करता है।

साफ है कि यदि इस पर रोक नहीं लगी, तो भविष्य में भारत जनसंख्या संबंधी गहरे संकट में फंस जाएगा। मगर आशाजनक पहलू यह है कि यदि अन्य गंभीर मसलों पर हमने नियंत्रण पा लिया है तो इस सांस्कृतिक समस्या पर भी अभियान चलाकर और कानूनों का सख्ती से पालन कर जरूर प्रगति की जा सकती है। जनसंख्या के ताजा आंकड़े नवजागृत भारत की कहानी बयां करते हैं। अब यह हमारा दायित्व है कि हम इस कहानी को उसके चरमोत्कर्ष तक ले जाएं।

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