Sunday, May 8, 2011
प्रभावी लोकपाल के लिए
अन्ना हजारे के अनशन के परिणामस्वरूप लोकपाल विधेयक का प्रारूप तैयार करने के लिए केंद्रीय मंत्रियों और सिविल सोसायटी के प्रतिनिधियों की दस सदस्यीय समिति के सामने अब चुनौती इस प्रस्तावित संस्था को लेकर जगी ऊंची जनआकांक्षाओं को पूरा करने की है। लोकपाल बिल के सरकारी और सिविल सोसायटी के मसविदों के बीच की खाई बेहद चौड़ी है। फिर सहमति के दायरे की तलाश सिर्फ उस समिति के अंदर ही नहीं होनी है, बल्कि सिविल सोसायटी के एक प्रमुख हिस्से ने इस बारे में व्यापक राय-मशविरे की मांग उठाकर साफ कर दिया है कि समाज के अनेक हिस्से उसी विधेयक को स्वीकार नहीं कर लेंगे, जिसे यह समिति तैयार करेगी। फिर विभिन्न राजनीतिक दलों की इस मामले पर सर्वदलीय सहमति की मांग है। आखिरकार विधेयक संसद में पेश होगा, जहां उसे स्थायी समिति या सदस्यों द्वारा पेश संशोधनों पर चर्चा जैसी प्रक्रियाओं से गुजरना होगा। ऐसे में 30 जून तक विधेयक तैयार करने और 15 अगस्त के पहले उसे संसद से पास कराने की समयसीमा व्यावहारिक नहीं लगती। आंदोलन का हिस्सा रहे समूहों के बीच उभरे मतभेदों को अगर जल्द नहीं पाटा गया, तो यह काम ज्यादा मुश्किल हो सकता है। प्रारूप समिति के सह-अध्यक्ष शांति भूषण ने साफ किया है कि उनका मकसद लोकपाल को एक ऐसी संस्था के रूप में स्थापित करना है, जो भ्रष्टाचार निरोधक कानून के दायरे में आने वाले लोगों के खिलाफ कारगर जांच कर सके। लेकिन अंतत: यह एक जांच एजेंसी ही होगी। इससे तुरंत जांच एवं फैसले की उम्मीद संजोए लोगों को निराशा हो सकती है। बहरहाल, लोकपाल की नियुक्ति प्रक्रिया, उससे जुड़ी स्वतंत्र जांच एजेंसी का गठन, अपनी पहल पर जांच के अधिकार, लोकपाल के निष्कर्षो के आधार पर त्वरित मुकदमे की व्यवस्था आदि पर सहमति तलाशी जा सकी, तो निश्चय ही प्रभावी लोकपाल की उम्मीद की जा सकती है।
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