Sunday, May 8, 2011

जय, जय, जय, जय हे..

ये गौरव के ऐसे क्षण हैं, जिन्हें महसूस करने का मौका किसी राष्ट्र के जीवन में दुर्लभ ही होता है। भारत के पूरे नक्शे पर नजर डालिए। हर जगह खुशी व उपलब्धि की एक जैसी अनुभूति है। क्रिकेट का देश में यही महत्व है। हर विभिन्नता, हर मतभेद के बीच जोड़ने वाला एक धागा। शनिवार रात को दिखा नजारा उन समाजशास्त्रियों की अवधारणा पर एक मुहर है, जो इस खेल को भारतीय राष्ट्रवाद का एक आधार मानते हैं। झारखंड के छोटे शहर से उगा सितारा जब एक उद्देश्य, एक भावना से प्रेरित अपने साथियों के साथ मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम पर चमका तो जैसे कश्मीर से कन्याकुमारी तक एक-एक कोना रोशन हो गया। वनडे क्रिकेट का विश्व चैंपियन होने का भारत का 28 साल पुराना इंतजार आखिर खत्म हो गया है। अब हम सचमुच क्रिकेट के शिखर पर हैं। उस खेल के शिखर पर, जिसका नाता उपनिवेशवाद और उससे संघर्ष के हमारे इतिहास से रहा है, जिसने पिछले 63 साल में भारत के एक आधुनिक राष्ट्र के रूप में उभरने के क्रम में इस बहुलतावादी देश में साझा नायक और हंसने-रोने के साझा पल उपलब्ध कराए हैं। महेंद्र सिंह धोनी के व्यक्तित्व में इस राष्ट्र का नया आत्मविश्वास और जोखिम उठाकर ऊंचाइयों तक पहुंचने का माद्दा प्रतिबिंबित होता है। युवराज, गौतम गंभीर और विराट कोहली संकटों से न घबराने की हमारी नई हिम्मत के प्रतीक हैं। वे सचिन तेंदुलकर के विराट व्यक्तित्व के साये में उस दौर से आगे की कहानी हैं, जब सचिन ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में कदम रखा था, जब व्यक्तिगत प्रतिभाएं तो खूब चमकती थीं, लेकिन टीम की साझा सफलता हमसे दूर रह जाती थी। यह बिजली की चमक जैसा 1983 के विश्व विजय से कहीं ऊंचा अपना नया मुकाम है, जहां साधिकार हमने जीत हासिल की है। हमारे राष्ट्रगान का जय, जय, जय, जय हे..आज ज्यादा सार्थक हो गया है।

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