Sunday, May 8, 2011

दोषी पिता और निर्दोष पीएम

हमारे देश के लोग मुझे अक्सर हैरान कर देते हैं। खासतौर पर तब, जब बात आम धारणाओं और आम भावनाओं की हो। मिसाल के तौर पर क्या यह अजीब नहीं है कि हमने आरुषि तलवार के पिता को अपनी बेटी की हत्या के मामले में दोषी मान लिया है, जबकि दूसरी तरफ चाहे जो हो जाए, हम यह मानने को राजी नहीं हैं कि हमारे प्रधानमंत्री भ्रष्टाचार के विभिन्न मामलों के लिए दोषी हैं। अगर हम अपनी धारणाओं के बारे में जानना चाहते हैं तो यह आकलन करना मददगार साबित हो सकता है कि हम किस तरह आम राय बनाते हैं। लेकिन चूंकि इस बात की पूरी संभावना है कि मुझे गलत समझ लिया जाएगा, इसलिए मैं तीन बातें साफ कर देना चाहता हूं। पहली बात यह कि आरुषि हत्याकांड और भ्रष्टाचार दोनों ही मामलों में कोई निर्णायक साक्ष्य अभी हमारे हाथ में नहीं हैं, इसलिए इन पर कोई निर्णय देने की न तो मेरी मंशा है और न ही यह उपयुक्त होगा। दूसरी बात यह कि मैं प्रधानमंत्री की तुलना आरुषि के पिता से नहीं कर रहा हूं। ये दोनों ही मामले पूरी तरह अलग-अलग हैं। तीसरी बात यह है कि किसी भी राजनीतिक दल विशेष के प्रति मेरे कोई निर्धारित पूर्वग्रह नहीं हैं।

सबसे पहले आरुषि हत्याकांड के मामले पर एक नजर डालते हैं। हममें से कई लोगों ने कई बार भोजन की मेज पर इस बारे में बातचीत की है। दूसरों की व्यक्तिगत त्रासदी का विश्लेषण करने की नैतिकता को तो रहने ही दें, लेकिन हमारी बातचीत का भी कोई नतीजा नहीं निकल पाता। एक तरफ परिस्थितिजन्य साक्ष्य हैं, जो आरुषि के पिता को संदेह के दायरे में लाते हैं। लेकिन दूसरी तरफ यह अभी तक पूरी तरह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि हत्या के कारण क्या रहे होंगे। वास्तव में तलवार परिवार के पास हर परिस्थितिजन्य साक्ष्य के लिए विश्वसनीय स्पष्टीकरण हैं और वह मामले की जांच जारी रखने के लिए तत्पर है। लेकिन इन सभी जानकारियों से हम मामले को हल नहीं कर सकते। न ही हम आरुषि के माता-पिता को दोषी ठहरा सकते हैं। हम केवल इतना कर सकते हैं कि अपने सिद्धांत गढ़ लें। लेकिन सच यही है कि आरुषि हत्याकांड की गुत्थी अभी तक सुलझाई नहीं जा सकी है और बहुत संभव है कि इस गुत्थी को कभी सुलझाया न जा सके। फिर भी बीते कुछ माह में हमने यह आम धारणा बना ली कि पिता ही दोषी हैं।

टीवी पर ओपिनियन पोल में बताया गया कि अधिकांश लोग यह सोचते हैं कि आरुषि के पिता ने ही उसकी हत्या की है। जब दो साल पहले नोएडा पुलिस ने यही बात कही थी तो सभी ने उससे असहमति जताई थी। लेकिन जब सभी संदिग्ध आरोपी निर्दोष पाए गए तो धीरे-धीरे यह माना जाने लगा कि पिता ने ही हत्या की होगी। क्लोजर रिपोर्ट द्वारा माता-पिता का उल्लेख किए जाने और इसके फौरन बाद अदालत द्वारा मामले की फाइल पुन: खोलने के आदेश ने शक की सुई माता-पिता की ओर घुमा दी। इससे भी बुरा यह हुआ कि आरुषि के माता-पिता टीवी पर आकर पुरजोर तरीके से अपनी बेगुनाही का सबूत देने लगे, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। भारत की जनता अपना मन बना चुकी थी और वह अपनी धारणाओं को बदलना नहीं चाहती थी। हम यह स्वीकार नहीं कर पाए कि यह मामला सुलझाया नहीं जा सकता। हमें किसी न किसी को दोषी ठहराना ही था, चाहे अदालत ने किसी को दोषी न ठहराया हो।

अब हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बारे में बात करते हैं। उनका नाम ही कुछ ऐसा है कि वह हमें एक सुखद और मोहक अनुभूति कराता है (दूसरी तरफ तलवार का नाम सुनकर हमारे मन पर इससे ठीक विपरीत प्रभाव पड़ता है)। प्रधानमंत्री की धीमी चाल, उनकी सुपरिचित सीधी-सरल भावभंगिमा, मद्धम आवाज और आक्रामकता की कमी उन्हें हम भारतीयों का प्रिय बना देती है। हम यह मानने लग जाते हैं कि वे कोई गलती कर ही नहीं सकते। यह ठीक वैसा ही है जैसे हम हिंदी फिल्मों में कभी यह कल्पना नहीं कर पाते थे कि एके हंगल भी कुछ गलत कर सकते हैं। भारत की राजनीति में एके हंगल जैसी शख्सियतें बहुत कमाल की साबित होती हैं। हम उन लोगों को पसंद करते हैं, जो मुंह पर ताला लगाकर रखते हैं, विनम्र होते हैं, कभी कोई बखेड़ा नहीं खड़ा करते और हमेशा लीक पर चलते हैं। आखिर हम सब भी तो ऐसे ही हैं या हम सभी से ऐसा ही बने रहने की अपेक्षा की जाती है।

यकीनन डॉ मनमोहन सिंह बुद्धिमान हैं, लेकिन वे अपनी क्षमताओं का अधिक उपयोग नहीं करते। यह राहत की बात है। डॉ तलवार द्वारा की जाने वाली बहस-जिरह तनाव पैदा करती है। हम सोचते हैं कि तलवार इतनी सफाई दे रहे हैं तो जरूर कोई बात होगी। डॉ मनमोहन सिंह भ्रष्टाचार से घिरे होने के बावजूद अपनी गरिमा बचाए हुए हैं। इसलिए हम उन्हें क्षमा कर देते हैं। हमें लगता है जैसे मीडिया और सीबीआई उन्हें नाहक ही परेशान कर रहे हैं।

लेकिन क्या वास्तव में ऐसा है? क्या मनमोहन सिंह एक भ्रष्ट सरकार के मुखिया नहीं हैं? क्या वे कुछ भी करने को स्वतंत्र नहीं हैं? और उनकी तथाकथित ‘गरिमा’ क्या है, जिसके बारे में हम इतनी बातें करते हैं? उनके पास ऐसी कौन-सी अतिरिक्त गरिमा है, जो दूसरे राजनेताओं के पास नहीं है? या क्या हमें गरिमा शब्द का वास्तविक अर्थ पता भी है? क्या हमने शिष्टाचार को गरिमा समझ लिया है? क्या प्रधानमंत्री का पद इनाम में जीती हुई कोई ट्रॉफी है? या वह कोई जॉब है? मनमोहन सिंह देश को बदल सकते थे, लेकिन उन्होंने मौन धारण करना उचित समझा। क्या वे दोषी नहीं हैं?

मैं किसी पर दोषारोपण नहीं कर रहा। मैं केवल यही बता रहा हूं कि हम किस तरह अति सरलीकरण कर देते हैं। हमें सतर्क रहना चाहिए और वास्तविकताओं को लेकर अपना दिमाग खुला रखना चाहिए। तलवार दंपती दोषी हो सकते हैं, लेकिन वे निर्दोष भी हो सकते हैं। ठीक इसी तरह हमारे विनम्र और शिष्ट प्रधानमंत्री कुछ भी गलत नहीं कर सकते, लेकिन वे दोषी भी हो सकते हैं।

चेतन भगत
लेखक अंग्रेजी के प्रसिद्ध युवा उपन्यासकार हैं।
db

No comments:

Post a Comment